Parasnath Digambar Jain Tirth

Email Address

info@parasnathdigambarjaintirth.com

Follow Us :

गर्भ, जन्म और तप स्थली - वाराणसी

वाराणसी में तीर्थंकर पार्श्वनाथ के गर्भ, जन्म और तप तीन कल्याणक हुए हैं ।

गर्भ कल्याणक

भगवान के गर्भ में आने से छह माह पूर्व से लेकर जन्म पर्यन्त 15 मास तक उनके जन्म स्थान में कुबेर द्वारा प्रतिदिन तीन बार साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा होती है। यह भगवान के पूर्व अर्जित कर्मों का शुभ परिणाम है।

  1. 56 दिक्ककुमारी देवियाँ माता की परिचर्या व गर्भशोधन करती हैं। यह भी पुण्य योग है।
  2. गर्भ अवतरण के समय माता को 16 उत्तम स्वप्न दिखते हैं। तीर्थंकर पार्श्वनाथ की माता वामा देवी ने १६ शुभ स्वप्न देखे थे जिनका फल राजा अश्वसैन ने बताया था:-

जन्म कल्याणक

तीर्थंकर होने वाली आत्मा का जब सांसारिक जन्म होता है तो देवभवनों व स्वर्गों आदि में स्वयं घंटे बजने लगते हैं और इंद्रों के आसन कम्पयमान हो जाते हैं। यह सूचना होती है इस घटना की कि भगवान का सांसारिक अवतरण हो गया है। सभी इंद्र व देव भगवान का जन्मोत्सव मनाने पृथ्वी पर आते हैं।
बालक का जन्म और जन्मोत्सव इंद्र गण सुमेरु पर्वत पर भगवान का अभिषेक करते है। तीर्थंकर के मामले में ऐसा गौरवशाली अभिषेक उनके पूर्वजन्मों के अर्जित पुण्यों का परिणाम होता है \ तीर्थंकर चूँकि विशेष शक्ति संपन्न होते हैं, अतः पांडुक वन में सुमेरु पर्वत पर क्षीरसागर से लाए 1008 कलशों से उनका जन्माभिषेक होता है | सौधर्म इन्द्र बालक के अंगूठे के चिन्ह को देख कर नाम पार्श्वनाथ और सर्प चिन्ह बताते हैं | पिता के दरबार में सौधर्म इन्द्र द्वारा तांडव नृत्य किया जाता है ।

तप कल्याणक/दीक्षा कल्याणक

भगवान जब अनंतर तीस वर्ष के हो गये तब एक दिन अयोध्या के राजा जयसेन ने उत्तम घोड़ा आदि की भेंट के साथ अपना दूत भगवान पार्श्वनाथ के समीप भेजा। भगवान ने भेंट लेकर उस दूत से अयोध्या की विभूति पूछी। उत्तर में दूत ने सबसे पहले भगवान ऋषभदेव का वर्णन किया पश्चात् अयोध्या का हाल कहा। उसी समय ऋषभदेव के सदृश अपने को तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध हुआ है, ऐसा सोचते हुए भगवान गृहवास से पूर्ण विरक्त हो गये और लौकांतिक देवों द्वारा पूजा को प्राप्त हुए। प्रभु देवों द्वारा लाई गई विमला नाम की पालकी पर बैठकर अश्ववन में पहुँच गये। वहाँ तेला का नियम लेकर पौष कृष्णा एकादशी के दिन प्रातः काल के समय सिद्ध भगवान को नमस्कार करके प्रभु तीन सौ राजाओं के साथ दीक्षित हो गये।
पारणा के दिन गुल्मखेट नगर के धन्य नामक राजा ने अष्ट मंगलद्रव्यों से प्रभु का पड़गाहन कर आहारदान देकर पंचाश्चर्य प्राप्त कर लिये। छद्मस्थ अवस्था के चार मास व्यतीत हो जाने पर भगवान अश्ववन नामक दीक्षावन में पहुँचकर देवदारु वृक्ष के नीचे विराजमान होकर ध्यान में लीन हो गये।

1985 में नव निर्मित तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी की गर्भ , जन्म और तप/दीक्षा कल्याणक स्थली - वाराणसी

1985 से पूर्व सैकड़ों वर्षो की तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी की गर्भ , जन्म और तप/दीक्षा कल्याणक स्थली - वाराणसी की मूल नायक वेदियाँ
सैकड़ो वर्षो पूर्व से नव निर्मित भगवान पार्श्वनाथ जी के मंदिर के पहले ( 1985 ) तक की मूल नायक भगवान पार्श्वनाथ जी की वेदी की फोटो ।

साभार: श्रीमती उषा रानी जैन
धर्मपत्नी स्व0 सुनील जैन
(श्री दिगंबर जैन समाज के पूर्व महामन्त्री)

साभार: श्रीमती उषा रानी जैन
धर्मपत्नी स्व0 सुनील जैन

(श्री दिगंबर जैन समाज के पूर्व महामन्त्री)

सैकड़ो वर्षो पूर्व से नव निर्मित भगवान पार्श्वनाथ जी के मंदिर

सैकड़ो वर्षो पूर्व से नव निर्मित भगवान पार्श्वनाथ जी के मंदिर के पहले ( 1985 ) तक की मूल नायक भगवान सुपार्श्वनाथ जी की वेदी की फोटो जो आज भी भेलूपुर में भगवान पार्श्वनाथ जी की मूल नायक वेदी के बायीं ओर स्थित है ।

साभार: श्रीमती उषा रानी जैन धर्मपत्नी स्व0 सुनील जैन
(श्री दिगंबर जैन समाज के पूर्व महामन्त्री)

साभार: श्रीमती उषा रानी जैन धर्मपत्नी स्व0 सुनील जैन (श्री दिगंबर जैन समाज के पूर्व महामन्त्री)

मूलनायक तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान की मूलवेदी पर स्थित प्रतिमाएँ,
भेलूपुर, वाराणसी

तीर्थंकर पार्श्वनाथ गर्भ ,जन्म , तप स्थली दिगंबर जैन मंदिर,भेलूपुर, वाराणसी
अन्तर्गत श्री दिगंबर जैन समाज, काशी


भेलूपुर क्षेत्र में तीर्थंकर पार्श्वनाथ का मंदिर सैकड़ों वर्षों से है।1985 में आपसी समझौते के अन्तर्गत मंदिर परिसर की भूमि को बांट कर दो अलग-अलग भव्य श्वेतांबर एवं दिगम्बर मंदिरों का ‘निर्माण कराया गया।
यहाँ ऊपर की मंजिल पर एक विशाल शिखरबन्द दिगम्बर जैन मन्दिर है, नीचे पुस्तकालय और सभाकक्ष के साथ वाचनालय तथा पीछे मुनियों के समाधि-स्थल हैं. इस मन्दिर के निर्माण के समय खुदाई से मिले पुरातात्त्विक अवशेष गुप्तकाल से ईसा की पांचवीं शताब्दी के समय के हैं, जो इसी मन्दिर के प्रांगण में सुरक्षित रखे हैं ।
यहाँ तीर्थयात्रियों के ठहरने के उत्तम प्रबंध के साथ एक विशाल धर्मशाला भी है।

श्री दिगम्बर जैन पंचायती मन्दिर: ग्वालदास साहू लेन,
चौक, वाराणसी

स्थित मन्दिर में मूलनायक तीर्थंकर पाश्र्वनाथ भगवान की काले पाषाण
की मनोरम मूर्ति के साथ अष्टधतु की एक प्रतिमा|
श्री दिगम्बर जैन समाज, काशी द्वारा संचालितद्ध

पंचायती मन्दिर: ग्वालदास साहू लेन चौक पर यह मन्दिर स्थित है, सन् 1940 ई० में आचार्य श्री 108 देशभूषण जी महाराज ने यहाँ चौमासा किया था. इस मन्दिर में मूलनायक भागवान पार्श्वनाथ की भव्य मनोहारी मूर्ति विराजमान है

सन् 1868 ई० निर्मित श्रीखड़गसेन उदयराज द्वारा बनवाया यह मन्दिर भेलूपुर के मन्दिरों में सबसे पुराना है. इस मन्दिर में तीन वेदियाँ हैं तथा एक माँ पद्मावती की श्वेत पाषाण की तीन फीट ऊँची अलौकिक मूर्ति विराजमान है. जिसे सिंघई-गोत्रीय श्री फूलचन्दजी ने स्थापित करवाया था.
वर्ष 1999 में सन्मतिसागरजी का ससंघ चतुर्मास भी यहाँ हुआ था.

मैदागिन चौराहे का मन्दिर : स्व० श्रीलाल बहादुर जैन ने यहाँ एक भव्य मन्दिर के साथ-साथ धर्मशाला भी बनवाई, जहाँ सन् 1949 ई० में आचार्य श्री 108 देशभूषण जी महाराज. सन् 1979 ई० में आचार्य श्री आर्यनन्दी, सन् 1988 ई० में आचार्य श्री 108 नेमिसागर एवं सन् 1999 ई० में आचार्य श्री 108 चैत्य सागर ने चौमासा किया था. यहाँ के मानस्तम्भ की नींव आचार्य चैत्यसागरजी के चौमासे में ही रखी गई थी, जिसको प्रतिष्ठा आचार्य वासुपूज्य सागरजी के चौमासे में सम्पन्न हुई.