सम्मेद शिखर जी जैन धर्म का एक बहुत ही पवित्र और सर्वोपरि तीर्थ है
श्री सम्मेद शिखर जी जैन धर्म का एक बहुत ही पवित्र और सर्वोपरि तीर्थ है. श्री सम्मेद शिखर जी वो तीर्थ है, जहां जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों को मोक्ष की प्राप्ति हुई.
श्री सम्मेद शिखर जी झारखंड राज्य की मधुबनी पहाड़ियों में स्थित है, जहां पहुंचना बहुत आसान है. श्री सम्मेद शिखर जी का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ईसरी में है, जो पारसनाथ स्टेशन के नाम से जाना जाता है. कोलकाता जाने वाली कई ट्रेनें इस स्टेशन पर रुकती है| स्टेशन से महज 23 किलोमीटर की दूरी पर मधुबनी जिला है, जहां श्रीसम्मेद शिखर जी स्थित है. आप पारसनाथ स्टेशन से गाड़ी या बस लेकर यहां आसानी से पहुंच सकते हैं. अगर आप फ्लाइट से जाना चाहते हैं तो रांची (झारखंड), पटना और कोलकाता में इसका सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है.
श्री सम्मेद शिखर जी में श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए बहुत अच्छी व्यवस्था की गई है. यहां रुकने के लिए आपको कई धर्मशालाएं मिल जाएंगी. आप तेरहपंथी, बीसपंथी कोठी और गुणायतन जैसी कुछ प्रसिद्ध धर्मशालाओं में भी रुक सकते है. इसके अलावा, यहां कई दिगंबर और श्वेतांबर धर्मशालाएं भी हैं. आपको गुणायतन में वन बीएचके फ्लैट भी आराम से मिल जाएगा.
श्री सम्मेद शिखर जी की पूरी वंदना, आसान शब्दों में कहें तो पर्वत की यात्रा कुल 27 किलोमीटर की है. इसमें 9 किमी की चढ़ाई, 9 किमी का उतार और 9 किमी की पर्वत वंदना शामिल है. पर्वत पर चढ़ने का सबसे सही समय रात 2 से सुबह 4 बजे के बीच होता है. रात के वक्त लोग आसानी से बिना घबराए पहाड़ चढ़ सकते हैं. पहाड़ की पूरी यात्रा करने में लगभग 12 घंटे लगते हैं. चूंकि पर्व पर रुकने का कोई साधन नहीं है, इसलिए लोग आधी रात से वंदना शुरू कर देते हैं, जिससे कि वे दोपहर या शाम तक वापस आ सकें.
श्री सम्मेद शिखर जी जाने का सबसे अच्छा मौसम ठंड का होता है, क्योंकि आप बिना थके आसानी से लंबी दूरी तय कर पाते हैं. बारिश के मौसम में श्री सम्मेद शिखर जी की वंदना ना करें. इसमें मौसम में जोखिम ज्यादा रहता है. श्री सम्मेद शिखर जी की यात्रा के वक्त 3-4 दिन का समय निकालकर आएं ताकि नीचे स्थित मंदिरों की भी यात्रा की जा सके.
अगर पर्वत पर आप जल्दी पहुंच जाते हैं तो सनराइज का आनंद भी ले सकते हैं. बादलों से ऊपर पहाड़ पर सुबह की मंद-मंद धूप मन को बहुत सुकून देती है. पर्वत पर जाते वक्त मोटे मोजे जरूर पहनें, क्योंकि लगातार चलने से पैरों में छाले पड़ सकते हैं. वंदना के दौरान एक छोटी टॉर्च साथ जरूर रखें, जो अंधेरे में आपकी राह आसान बनाएगी.
वंदना करते वक्त ऐसी बहुत चीजें हैं, जो आपको ध्यान में रखनी है. पहाड़ पर जाते वक्त जूते-चप्पल ना पहनें. पहाड़ की वंदना के वक्त रास्ते में पहाड़ की दुकानों से खरीद कर कुछ भी नहीं खाना चाहिये या नींबू पानी भी नहीं लेना चाहिये | नीचे उतरते समय शीतल नाला पर बीस पंथी कोठी की तरफ से नास्ते एवं जल की व्यवस्था रहती है उसे ही लें। पहाड़ की वंदना करते वक्त छड़ी का इस्तेमाल जरूर करें. लंबी यात्रा में ये बहुत मददगार साबित होगी. अगर आप मंदिर में पूजा करना चाहते हैं तो पूजा के वस्त्र अलग से जरूर में रखें. पहाड़ पर यात्रा के दौरान पेट भरकर न खाएं. इससे आपको चलने में दिक्कत आ सकती है. अगर बारिश के मौसम में यात्रा करने जा रहे हैं तो छाता और रेनकोट साथ जरूर रखें.