Parasnath Digambar Jain Tirth

Email Address

info@parasnathdigambarjaintirth.com

Follow Us :

जैन धर्म

जैन धर्म भारत का प्राचीनतम धर्म है। प्रत्येक युग में जैनधर्म के प्रवर्तक चौबीस तीर्थकर होते हैं। इस युग के प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव एवं चौबीस वें तीर्थकर भगवान महावीर हैं। प्रत्येक तीर्थंकर केवल ज्ञान प्राप्ति के उपरान्त अपनी धर्म देशना के माध्यम से जैन धर्म का प्रवर्तन करते हैं। जिस प्रकार सृष्टि का न तो आदि है और न ही अन्त यानि अनादि निधन है उसी प्रकार जैन धर्म भी अनादिकाल से प्रचलित धर्म है। यह किसी व्यक्ति विशेष द्वारा चलाया गया धर्म नहीं है बल्कि प्राणी मात्र का धर्म है। जिसने रागद्वेष को उत्पन्न करने वाले काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकारों को जीत लिया है यानि अपनी इन्द्रियों को अपने वश में कर लिया वह जिन है, जितेन्द्रिय है, वीतरागी है। ऐसे वीतरागी जितेन्द्र के द्वारा उपदिष्ट धर्म जैन धर्म है। जैनधर्म के अनुसार प्रत्येक आत्मा समान है तथा प्रत्येक आत्मा स्वपुरुषार्य द्वारा परमात्मा बन सकती है। इस संसार के सभी प्राणी जैन धर्म का पालन कर सकते हैं चाहे वे किसी भी जाति के हों। यह एक आध्यात्मिक धर्म है तथा वे सभी जो स्वयं को सात्विकता तथा सच्चे सुख के मार्ग पर लगाना चाहते हैं, इस धर्म का पालन कर सकते हैं। जैन धर्म का प्राण अहिंसा है और इसी की रक्षा के लिए किये जाने वाले सभी प्रयत्न जैनधर्म के मूल तत्व हैं। इसीलिये सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह भी अहिंसा को पुष्ट करने वाले कारक हैं। जीव मात्र के प्रति मैत्री भाव, गुणी जनों के प्रति समादर, दुखी जीवों के प्रति करुणाभाव और विपरीत आचरण करने वालों के प्रति माध्यस्य भाव अहिंसक जीवन शैली है। आचरण में अहिंसा, विचारों में अनेकान्त, वाणी में स्यादवाद और समाज में अपरिग्रह- ये जैन धर्म के चार मूल स्तंभ हैं जिन पर जैन धर्म रूपी महल खड़ा हैं।
आचरण में अहिंसा, विचारों में अनेकान्त, वाणी में स्यादवाद और समाज में अपरिग्रह- ये जैन धर्म के चार मूल स्तंभ हैं जिन पर जैन धर्म रूपी महल खड़ा हैं।

जैन धर्म में प्रत्येक तीर्थंकर के मोक्षगामी होने के बाद जब तक दूसरे तीर्थंकर का जन्म होता है तब तक प्रथम तीर्थंकर का ही शासनकाल चलता है। दूसरे तीर्थंकर के मोक्ष जाने पर उनका शासन काल तब तक चलता रहेगा जब तक की अगले तीर्थंकर का जन्म नहीं होता है। इस प्रकार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी के मोक्ष गामी होने के पश्चात उनका शासनकाल इस पृथ्वी पर चल रहा है। मूलतः जैन धर्म दिगम्बरत्व प्रधान धर्म है।वह भगवान महावीर के शासन काल को पूर्णतया प्रतिपादित करता है सम्राट अशोक द्वारा निर्मित सम्राट अशोक स्तंभ का शीर्ष जो भारत सरकार का राष्ट्रीय चिन्ह है वाराणसी के सारनाथ क्षेत्र की खुदाई में मिला था एवं सारनाथ संग्रहालय में प्रदर्शित है। इस शीर्ष द्वारा भगवान महावीर का चारों दिशाओं मे शासन काल प्रतिपादित करता हुआ भगवान महावीर का चिन्ह् चार सिंह बने हैं। सिंह के नीचे बैल, हाथी, घोड़ा एवं सिंह बने है तथा इसके बीच में 24 तीलियों वाला चक्र बना है। जो जैन धर्म को प्रतिपादित करता है। क्योंकि बैल प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ का चिन्ह है उसके बाद समय चक्र चौबीस घंटे उनके शासन को प्रतिपादित करता है। फिर हाथी चिन्ह भगवान अजित नाथ जो जैन धर्म के दूसरे तीर्थंकर हैं को दर्शाता है फिर हाथी के चिन्ह के बाद समय चक्र है तथा इसके बाद तृतीय तीर्थकर संभव नाथ जी का चिन्ह घोड़ा अंकित है एवं समय चक्र के बाद सीधे चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का चिन्ह सिंह अंकित है। इस प्रकार भगवान महावीर शासनकाल सम्राट अशोक द्वारा भी प्रतिपादित किया गया है परन्तु भगवान महावीर के लगभग तीन सौ वर्ष पश्चात सम्राट चन्द्रगुप्त के शासन काल में उत्तर भारत में भीषण अकाल की चेतावनी जैन मुनी भद्रबाहु द्वारा दी गई थी और सभी को दक्षिण की ओर जाने को कहा था। परन्तु कुछ मुनि दक्षिण की ओर नहीं गये व अपनी दिगम्बर चर्चा का पालन नहीं कर सके। उन्होंने श्वेत वस्त्र धारण कर भिक्षा मांग कर जीवन निर्वाह किया। श्वेत वस्त्र धारी होने के कारण श्वेतांबर कहलाये। इस प्रकार जैन धर्म श्वेतांबर एवं दिगांम्बर दो पथों में बंट गया।