यहाँ भगवान पार्श्वनाथ की सातिशय, मनोवांछित फलदायक प्रतिमा विराजमान है। लोकोक्ति के अनुसार इस मूर्ति का सिर धड़ से अलग हो गया तब श्रावकों ने उसके स्थान पर अन्य मूर्ति स्थापित करनी चाही, तो एक श्रावक को स्वप्न आया कि एक कमरे में गड्डा बनाकर मुझे (खण्डित मूर्ति को) उसमें रखकर गड्डे में घी, शक्कर भर दो, सात दिन की अखण्ड पूजन से मूर्ति पूर्ववत हो जायेगी। ऐसा ही होने पर प्रतिमा की पुन: प्रतिष्ठा की गई।
विशेष जानकारी : कार्तिक शुक्ल 15 को वार्षिक मेला लगता है। प्रति पूर्णिमा को महाभिषेक एवं पर्यूषण पर्व / गुड़ी पड़वा, पार्श्वनाथ जयंती आदि वर्ष में 29 बार अभिषेक