यह अति प्राचीन अतिशय क्षेत्र है। विघ्न आने पर भक्तिभाव से घी का अभिषेक करने पर विघ्न दूर हो जाता है, ऐसी लोगों की श्रद्धा है। पद्मासन प्रतिमा के सिर पर सर्प लांछन न होकर पाद पीठ पर सर्प लांछन बना हुआ है। यह क्षेत्र ‘कासार आष्टा’ के नाम से जाना जाता है।
विशेष जानकारी :
भगवान पार्श्वनाथ के केवलज्ञान पर प्रतिवर्ष तीर्थ पर चैत्रवदी चौथ का वार्षिक मेला लगता है। कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र-प्रदेश से तीर्थ यात्री आते हैं। बरसात में क्षेत्र दर्शनीय हो जाता है एवं महल के ऊपर से पानी गिरता है।