अति प्राचीन अतिशय क्षेत्र है। यहाँ पर भगवान चिंतामणि पार्श्वनाथ की पंचकुमार युक्त अति मनोज्ञ एक हजार साल पुरानी मनोवांछित फलदायी चमत्कारिक मूर्ति विराजमान है । मन्दिर का हेमाडपंथी वास्तु क्षीण होने से मन्दिर, धर्मशाला के जीर्णोद्धार का काम पूर्णत: नया हुआ है और परमपूज्य 108 आचार्य श्री देवनन्दीजी महाराज की ससंघ की उपस्थिति में पंचकल्याणक और वेदी प्रतिष्ठा दिनांक 1 से 8 जून 2003 को हुई। आसना नदी के पश्चिम तट पर बसा हुआ यह क्षेत्र, भूमि से 20 फुट ऊँची गढ़ी पर विराजमान है।
विशेष जानकारी :
गांव में से मन्दिरजी में पानी मिला दूध कभी नहीं दिया जाता। वार्षिक मेला कार्तिक सुदी पूर्णिमा के अलावा मार्गशीर्ष वदी ग्यारस से तेरस तक श्री पार्श्वनाथ जन्म जयंती को वार्षिक उत्सव मनाते हैं।