स्वर्ण मंदिर के निर्माण में तत्कालीन श्रेष्ठियों ने 2 मन (80 किलो) सोने का उपयोग स्वर्ण चित्रकारी हेतु किया था। जो इस मन्दिर का वैशिष्ठ्य है। ग्वालियर के इर्द-गिर्द 7 वीं – 8वीं शताब्दी से 14 वीं – 15 वीं शताब्दी तक प्राचीन जिनालयों के दर्शन होते हैं। रियासतों के काल से श्री 1008 पार्श्वनाथ दि. जैन बड़ा मंदिर अपनी गौरवशाली संस्कृति समेटे हुए हैं एवं तेरापंथी पंचायती मंदिर पुरानी सहेली के नाम से विख्यात है। इसका निर्माण भादों सुदी 2 संवत् 1761 में हुआ। भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा संवत् 1212 की प्रतिष्ठित है। इस मंदिर में 163 मूर्तियाँ है जो – चांदी, मूंगा, स्फटिक मणि, प्लेट, पाषाण, कसौटी, संगमरमर तथा श्यामश्वेत पाषाण की हैं। एक इंच से 5″ – 6″ अवगाहना की खड़गासन तथा पद्मासन प्रतिमाएं एवं त्रिकाल चौबीसी विराजमान हैं। एक प्रतिमा भगवान पार्श्वनाथ की श्यामवर्ण की फणयुक्त है। कुल 6 वेदियाँ है एवं कलापूर्ण समवशरण, जिसमें स्वर्ण चित्रकारी का काम सोने की कलम से बारीकी से किया गया। है एवं कई अन्य दर्शनीय स्थल हैं।